बेटी ने निभाया बेटों से भी बड़ा फर्ज, पिता की अंतिम इच्छा पूरी कर रचा इतिहास
जब समाज की परंपराओं को तोड़कर कोई कदम इंसानियत और रिश्तों के नए मायने गढ़ता है, तो वह इतिहास बन जाता है। सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के बरमकेला ब्लॉक के ग्राम बोरे की जया चौहान ने अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी कर ऐसा ही इतिहास रच दिया। उन्होंने यह साबित कर दिया कि बेटियाँ किसी भी मायने में बेटों से कम नहीं होतीं।
पिता की अंतिम इच्छा
12 अगस्त 2025 को ग्राम बोरे निवासी विद्याधर चौहान का निधन हो गया। जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने अपनी बेटी जया से कहा था —
“मेरे पिंडदान और अस्थि विसर्जन की जिम्मेदारी तुम निभाओ।”
बेटी ने निभाया जिम्मेदारी
पिता की यह अंतिम इच्छा जया चौहान के लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद बन गई। उन्होंने परंपरा से हटकर बेटे की तरह सिर मुंडवाकर विधि-विधान से पिंडदान किया। इस भावुक पल को देखकर परिवार और गाँव के लोग भी आँसुओं से भर उठे।
लोगों की प्रतिक्रिया
रस्म पूरी होते ही पंडित ने कहा —
“बिटिया, तुमने बेटे से भी बढ़कर फर्ज निभाया है। आज तुम पूरे समाज का गर्व हो।”
वहीं नाई की आँखें भी नम हो गईं और उन्होंने कहा —
“मैं सौभाग्यशाली हूँ कि इस रस्म का हिस्सा बना। आपके पिता सचमुच धन्य थे जो आपको पाकर गए।”
जया की भावुक अपील
रस्म पूरी करने के बाद जया चौहान ने भावुक होकर कहा —
“मेरे पापा ने मुझ पर बेटे से भी बढ़कर विश्वास किया था। उनकी इच्छा पूरी करके मुझे गर्व है। मैं चाहती हूँ कि समाज बेटियों को बोझ नहीं, आशीर्वाद समझे और भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाओं को हमेशा के लिए खत्म करे।”
समाज के लिए प्रेरणा
जया चौहान का यह कदम केवल एक धार्मिक रस्म नहीं था, बल्कि पूरे समाज के लिए एक गहरा संदेश है। यह उन परिवारों के लिए सबक है जो आज भी बेटा-बेटी में भेदभाव करते हैं। जया ने साबित किया है कि बेटियाँ न सिर्फ बराबरी कर सकती हैं, बल्कि आगे बढ़कर इतिहास भी रच सकती हैं।

