बच्चे टूटी पुलिया और उफनती नदी पार कर स्कूल जाने को मजबूर, हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान और राज्य सरकार से मांगा जवाब
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छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल से एक गंभीर और दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। दंतेवाड़ा और आसपास के जिलों में स्कूली बच्चे रोजाना टूटी हुई पुलिया और उफनती नदी पार करके स्कूल जाने को मजबूर हैं। यह स्थिति केवल खतरनाक ही नहीं बल्कि बच्चों के जीवन को सीधी चुनौती देने वाली है।
हाईकोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान
बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि –
"यह बच्चों की जिंदगी से जुड़ा संवेदनशील मामला है और लंबे समय तक ऐसी स्थिति बर्दाश्त नहीं की जा सकती।"
कोर्ट ने राज्य सरकार से विस्तृत जवाब मांगा है और केंद्र से हुई बातचीत व अब तक की कार्रवाई पर नया हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
सरकार का जवाब और डीपीआर की स्थिति
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि पुल निर्माण का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है। तकनीकी आपत्तियों को दूर करने के बाद संशोधित डीपीआर (Detailed Project Report) 20 अगस्त को गृह मंत्रालय को भेज दिया गया है। कोर्ट ने इस पर गहरी चिंता जताई और कहा कि बच्चों की जान को खतरे में डालना अस्वीकार्य है। इस मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी।
मीडिया रिपोर्ट से हुआ खुलासा
दरअसल, यह मामला तब सुर्खियों में आया जब स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में बच्चे नदी और टूटे पुल से होकर स्कूल जाते हुए दिखे। इन तस्वीरों ने लोगों का दिल दहला दिया और सवाल खड़े कर दिए कि आखिर बच्चों की सुरक्षा पर इतना बड़ा जोखिम क्यों उठाया जा रहा है?
बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा पर सवाल
विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण और आदिवासी अंचल में शिक्षा की सबसे बड़ी बाधा बुनियादी सुविधाओं की कमी है। अगर बच्चे रोजाना इस तरह जान जोखिम में डालकर स्कूल जाएंगे तो इससे उनकी शिक्षा पर भी असर पड़ेगा और कई अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने से कतराने लगेंगे।
क्या है उम्मीद?
अब जब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है, तो उम्मीद की जा रही है कि सरकार और प्रशासन जल्द ही ठोस कदम उठाएंगे और बच्चों के लिए सुरक्षित मार्ग
और पुल का निर्माण कराया जाएगा।

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