टीएस सिंहदेव के अलखनंदा टॉकीज में तालाबंदी मामला: 33 साल बाद मिला न्याय, पूर्व कलेक्टर पर जुर्माना

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 टीएस सिंहदेव के अलखनंदा टॉकीज में तालाबंदी मामला: 33 साल बाद मिला न्याय, पूर्व कलेक्टर पर जुर्माना



By Surya News Raigarh | Updated: 31 अक्टूबर 2025


🎬 33 साल पुराना मामला फिर चर्चा में


छत्तीसगढ़ के सरगुजा राजपरिवार के स्वामित्व वाले अलखनंदा टॉकीज के लाइसेंस निरस्तीकरण का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है।

बिलासपुर उच्च न्यायालय ने 33 साल पुराने इस विवाद में तत्कालीन कलेक्टर टीएस छतवाल को दोषी ठहराते हुए आदेश दिया है कि वे राजपरिवार को ₹34,795 की क्षतिपूर्ति राशि ब्याज सहित अदा करें।


⚖️ 1992 की राजनीतिक पृष्ठभूमि


यह पूरा मामला वर्ष 1992 का है। उस समय टीएस सिंहदेव द्वारा संचालित अलखनंदा टॉकीज का लाइसेंस तत्कालीन भाजपा सरकार के दौरान निरस्त कर दिया गया था।

यह निर्णय उस वक्त लिया गया जब प्रदेश में राजनीतिक हलचल बढ़ी हुई थी — वाड्रफनगर के बिजाकुरा गांव में विशेष पिछड़ी जनजाति के रिबई पंडो और उनके परिवार के दो बच्चों की भूख से मौत की घटना ने पूरे राज्य को हिला दिया था।


🏛️ कांग्रेस ने उठाया था मामला


राजपरिवार की सदस्य और पूर्व मंत्री देवेंद्र कुमारी सिंहदेव ने तत्कालीन कलेक्टर के निलंबन की मांग की थी।

मामले ने इतना तूल पकड़ा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव को खुद अप्रैल 1992 में वाड्रफनगर आकर स्थिति का जायजा लेना पड़ा था।


🎞️ लाइसेंस निरस्ती की कार्रवाई


राजपरिवार के सदस्य अरुणेश्वर शरण सिंहदेव के भाई टीएस सिंहदेव के स्वामित्व वाली अलखनंदा टॉकीज को

2 मार्च 1992 को विधिवत लाइसेंस जारी किया गया था।

लेकिन, 19 अप्रैल 1992 को कलेक्टर टीएस छतवाल ने अचानक लाइसेंस निरस्त करने का नोटिस जारी कर दिया।

अब 33 साल बाद अदालत ने इसे दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई मानते हुए राजपरिवार के पक्ष में फैसला सुनाया है।


 फैसले का महत्व


यह फैसला न सिर्फ एक पुराने विवाद का अंत है, बल्कि यह प्रशासनिक जवाबदेही का भी एक उदाहरण है।

तीन दशक बाद भी न्यायालय ने साफ संदेश दिया है कि कानून के आगे कोई भी व्यक्ति — चाहे पद या राजनीति में कितना ही बड़ा क्यों न हो — जवाबदेह रहेगा।

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