छत्तीसगढ़: ट्रायबल विभाग में 45 फर्जी टेंडर कांड का खुलासा, 2 अफसर जेल में और बाबू फरार
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में आदिवासी विकास विभाग (Tribal Department) में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। जांच में खुलासा हुआ है कि विभाग के अधिकारियों और बाबुओं ने मिलकर 45 फर्जी टेंडर जारी किए। इस कांड में करोड़ों का गबन हुआ है। पुलिस ने दो पूर्व सहायक आयुक्तों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है जबकि विभाग का एक बाबू अब भी फरार बताया जा रहा है
मामला कैसे खुला?
जिला प्रशासन की प्रारंभिक जांच (Preliminary Investigation) में पता चला कि 9 करोड़ रुपये के 6 टेंडर ऐसे थे जिन्हें कभी प्रसारित ही नहीं किया गया। न तो किसी अखबार में विज्ञापन छपा और न ही ऑनलाइन पोर्टल पर टेंडर प्रकाशित किया गया। सीधे चहेते ठेकेदारों को काम बांटकर सरकारी खजाने में भारी भ्रष्टाचार किया गया।
दंतेवाड़ा के कलेक्टर कुणाल दुदावत ने गड़बड़ी की शिकायत मिलने के बाद जांच बैठाई। जांच में मामला सही पाया गया तो मौजूदा सहायक आयुक्त ने पुलिस थाने में लिखित आवेदन देकर एफआईआर दर्ज करवाई।
किन अफसरों पर गिरी गाज?
फर्जी टेंडर कांड में अब तक जिन लोगों पर कार्रवाई हुई है, उनमें –
डॉ. आनंदजी सिंह, पूर्व सहायक आयुक्त (जेल भेजे गए)
के.एस. मसराम, रिटायर्ड सहायक आयुक्त (जेल भेजे गए)
राजू कुमार नाग, विभाग का बाबू (फरार, तलाश जारी)
इन तीनों पर आरोप है कि इन्होंने मिलकर 45 फर्जी टेंडर जारी किए और करोड़ों का घोटाला किया।
गंभीर धाराओं में दर्ज हुआ केस
दंतेवाड़ा पुलिस ने अफसरों और बाबू के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत मामला दर्ज किया है। उन पर धारा 318(4), 338, 336(3), 340(2) और 61(2) जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
लंबे समय से विवादों में रहे अफसर
इस मामले में जेल भेजे गए डॉ. आनंदजी सिंह का विवादों से पुराना नाता है।
उन पर गीदम थाने में रेप केस दर्ज है, हालांकि फिलहाल कोर्ट से उन्हें राहत मिली हुई है।
बीजापुर में पोस्टिंग के दौरान उन पर ACB (आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो) की जांच भी बैठी थी।
रायपुर और जगदलपुर में उनके आवास पर एसीबी की टीम ने छापा भी मारा था, लेकिन वे पहले ही फरार हो गए थे।
करोड़ों का खेल और सिस्टम पर सवाल
इस पूरे मामले ने छत्तीसगढ़ में आदिवासी विकास विभाग (Tribal Department Chhattisgarh) की कार्यप्रणाली पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। टेंडर प्रक्रिया पारदर्शी न होकर गुपचुप तरीके से पूरी की गई। निविदा (Tender Notice) को अखबारों और पोर्टल पर प्रकाशित न करना सरकारी नियमों का सीधा उल्लंघन है।
इस घोटाले ने साफ कर दिया है कि सिस्टम के अंदर किस तरह अफसर और बाबू मिलकर जनता के पैसे का दुरुपयोग कर रहे हैं।
आगे क्या?
फर्जी टेंडर घोटाले (Fake Tender Scam in Chhattisgarh) की जांच अभी भी जारी है। पुलिस फरार बाबू राजू कुमार नाग की तलाश में दबिश दे रही है। वहीं यह भी आशंका जताई जा रही है कि इस पूरे कांड में और भी अफसरों और ठेकेदारों की संलिप्तता सामने आ सकती है।

