भाजपा नेता ने मांगी इच्छा मृत्यु: PM मोदी की सभा में जाते समय हुए हादसे के बाद टूटा परिवार, 35 लाख कर्ज में डूबा
भाजपा नेता बिशंभर यादवछत्तीसगढ़ (बिश्रामपुर): राजनीति में हमेशा पार्टी और कार्यकर्ताओं के लिए समर्पित रहने वाले भाजपा नेता बिशंभर यादव आज नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रायपुर सभा में शामिल होने जाते वक्त हुए सड़क हादसे ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी। हादसे में वे स्थायी दिव्यांग हो गए और अब इलाज के कारण परिवार कर्ज के बोझ तले दब चुका है। हालात इतने खराब हैं कि बिशंभर ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की अनुमति तक मांग ली है।
हादसा जिसने जिंदगी बदल दी
7 जुलाई 2023 को विधानसभा चुनाव से पहले रायपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशाल आमसभा थी। इस कार्यक्रम के लिए भाजपा बिश्रामपुर मंडल से 52 कार्यकर्ता बस में सवार होकर रायपुर के लिए रवाना हुए थे। बस को जिला संगठन ने उपलब्ध कराया था। लेकिन रास्ते में बेमेतरा के पास बस हादसे का शिकार हो गई।
इस दर्दनाक दुर्घटना में बस चालक समेत जमदेई गांव के कार्यकर्ता रूपदेव सिंह गोंड़ और सजन सिरदार की मौत हो गई थी। वहीं भाजपा मंडल महामंत्री बिशंभर यादव गंभीर रूप से घायल हो गए।
इलाज में खर्च हुए 35 लाख, हर महीने 40 हजार का खर्च
हादसे के बाद से बिशंभर यादव पूरी तरह से स्थायी दिव्यांग हो चुके हैं। दो साल के भीतर ही उनके उपचार पर करीब 30 से 35 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। इसके बावजूद उनकी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है।
परिवार पर अब हर महीने 30 से 40 हजार रुपये इलाज का खर्च आ रहा है, जो उन्हें कर्ज में डुबो रहा है। आर्थिक तंगी की वजह से परिवार पूरी तरह टूट चुका है।
भाजपा नेता बोले – पार्टी ने छोड़ दिया, अब मरना बेहतर
अपनी व्यथा साझा करते हुए बिशंभर यादव ने कहा कि उन्होंने हमेशा पार्टी और कार्यकर्ताओं को सर्वोपरि रखा, लेकिन आज जब उन्हें सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत है, तब भाजपा संगठन उनकी कोई सुध नहीं ले रहा।
उनका कहना है कि इलाज और कर्ज ने जीना दूभर कर दिया है। ऐसे हालात में उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है।
कार्यकर्ताओं की उपेक्षा पर उठे सवाल
यह मामला भाजपा संगठन की कार्यकर्ताओं के प्रति जिम्मेदारी पर भी सवाल खड़े करता है। पार्टी नेताओं के लिए समर्पित कार्यकर्ता यदि हादसे का शिकार होकर दिव्यांग हो जाते हैं और उन्हें संगठन का सहारा तक नहीं मिलता, तो यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।

